पितरों की प्रसन्ता के लिये धर्म के नियमानुसार हविष्ययुक्त पिंड प्रदान आदि कर्म करना ही श्राध्द कहलाता है। श्राध्द करने से पितरों कों संतुष्टि मिलती है और वे सदा प्रसन्न रहते हैं और वे श्राध्द कर्ता को दीर्घायू प्रसिध्दि, तेज स्त्री पशु एवं निरागता प्रदान करते है। कुंडली में एक अहम दोष पितृ दोष (Pitra Dosha in Kundali) को भी माना जाता है। कई लोग इसे पित्ररों यानि पूर्वजों के बुरे कर्मों का फल मानते हैं तो कुछ का मानना है कि अगर पित्ररों का दाह-संस्कार सही ढंग से ना हो तो वह नाखुश होकर हमें परेशान करते हैं। कुंडली में पितृ दोष तब होता है जब सूर्य, चन्द्र, राहु या शनि में दो कोई दो एक ही घर में मौजुद हो।
सामान्यत: व्यक्ति का जीवन सुख -दुखों से मिलकर बना है. पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड भी दे, परन्तु दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बने ही रहते है, फिर वे चाहें, संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में हो सकते है। पितृ दोष को समझने से पहले पितृ क्या है इसे समझने का प्रयास करते है।
नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है
पितृ दोष के कारण :
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पितृ दोष (Pitra Dosha) उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते है। जैसे:- परिवार में अकाल मृ्त्यु हुई हों, परिवार में इस प्रकार की घटनाएं जब एक से अधिक बार हुई हों। या फिर पितरों का विधी विधान से श्राद्ध न किया जाता हों, या धर्म कार्यो में पितरों को याद न किया जाता हो, परिवार में धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न न होती हो, धर्म के विपरीत परिवार में आचरण हो रहा हो, परिवार के किसी सदस्य के द्वारा गौ हत्या हो जाने पर, या फिर भ्रूण हत्या होने पर भी पितृ दोष व्यक्ति कि कुण्डली में नवम भाव में सूर्य और राहू स्थिति के साथ प्रकट होता है। नवम भाव क्योकि पिता का भाव है, तथा सूर्य पिता का कारक होने के साथ साथ उन्नती, आयु, तरक्की, धर्म का भी कारक होता है, इसपर जब राहू जैसा पापी ग्रह अपनी अशुभ छाया डालता है, तो ग्रहण योग के साथ साथ पितृ दोष बनता है। इस योग के विषय में कहा जाता है कि इस योग के व्यक्ति के भाग्य का उदय देर से होता है। अपनी योग्यता के अनुकुल पद की प्राप्ति के लिये संघर्ष करना पडता है। हिन्दू शास्त्रों में देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए। क्योकि देव कार्यो से अधिक पितृ कार्यो को महत्व दिया गया है । इसीलिये देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृ्प्त करना चाहिए। पितर कार्यो के लिये सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात आश्चिन मास का कृ्ष्ण पक्ष समझा जाता है।
पितृ दोष से युक्त जोड़े को संतान प्राप्ति में बेहद कठिनाई होती है। गर्भ ठहरने के बाद लगातार गर्भपात की समस्या आने पर इस दोष पर विचार कर लेना चाहिए। पितृ दोष से मुक्ति के कुछ विशेष उपाय:
पितृदोष पूजा (नारायण नागबलि पूजा) :
नारायण नागबली ये दोनो विधी मानव की अपूर्ण इच्छा , कामना पूर्ण करने के उद्देश से किय जाते है इसीलिए येदोने विधी काम्यू कहलाते है।
नारायणबलि और नागबलि ये अलग-अलग विधीयां है। नारायण बलि का उद्देश मुखत:पितृदोष निवारण करना है । और नागबलि का उद्देश सर्प/साप/नाग हत्याह का दोष निवारण करना है। केवल नारायणबलि यां नागबलि कर नहीं सकतें, इसगलिए ये दोनो विधीयां एकसाथ ही करनी पडती हैं।
पितृदोष निवारण के लिए नारायण नागबली कर्म करने के लिये शास्त्रों मे निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्मजातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते है। ये कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकता है,इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है।
कृपया ध्यान दे :
- नारायण नागबली पूजा 3 दिनों की है जिसमे विधी करने वालोको 3 दिन त्र्यंबकेश्वर मे रुकना पडता है।कृपया मुहर्त के एक दिन पहले या सुबह जल्दी 6 बजे तक त्र्यंबकेश्वर मे पहुचना पडता है |
- इस विधी की दक्षना मे सभी पूजा सामग्री और 2 व्यक्तियों के लिए खाने कि व्यवस्था हमारे तरफ से होती है |
- कृपया आप के साथ नये सफेद कपड़े धोती, गमछा (नैपकिन), और आपकी पत्नी के लिये साड़ी, ब्लाउज जिसका रंगकाला या हरा नही होना चाहीये।
- इस विधी के लिए आपको एक 1.25 ग्राम सोने का नाग लेके आना है।
- विधी के चार दिन पहले कृपया फोन करके हमे अवगत कराये।